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Showing posts from June, 2007

समूहबद्धता और जातिवाद...

पिछ्ले लेख पर ज्यादा प्रतिक्रियाऎं तो नहीं आयी लेकिन जो  भी आयीं उन्होने कुछ नये प्रश्न खड़े कर दिये.प्रमोद जी बोले यह दिल्‍ली ही नहीं, मुंबई- कमोबेश किसी भी बड़े भारतीय शहर की अंदरूनी डायरी है. इस अनुभव से नतीजा क्‍या निकलता है? एक तो वह जिसे आप समूहबद्धता की सहूलियत का सीधा, आसान-सा नाम देकर छुट्टी पा सकते हैं. और देखना चाहें तो (मुझे हर जगह वही प्रभावी दीखता है)- कि ऊपरी तौर पर आधुनिकता के दिखावटी हो-हल्‍ले के बावजूद किस तरह यह हमारी एंटी-शहरी, घेटोआइज़्ड और अपनी पहचानी सामूहिकता से बाहर किसी भी अजनबीयत से भारी भय की मानसिकता है! आपको-हमको उतना न दिखे, मगर किसी भी अनजानी व नयी जगह में अल्‍पसंख्‍यक जिसकी सबसे ज्‍यादा तक़लीफ़ें व अलगावपन झेलते व जीते हैं.   यानि वो मानते है कि मेरे अनुभव मात्र मेरे अनुभव ही नहीं हैं उनका एक सार्वजनिक सरोकार है.लेकिन वो उन अनुभवों के नतीजे से खुश नहीं उनका कहना है ये नतीजा उतना सहज नहीं जितना मानने की भूल मैं कर रहा हूँ. वरन ये काफी ज़टिल है और इसके मूल में कहीं ना कहीं हमारे अल्पसंख्यक होने पर भय की मानसिकता भी है....मैं उनसे पूरी तरह से सहमत हूँ

अहमदाबाद और दिल्ली का जातिवाद ? ..

पहले रवीश जी की पोस्ट आयी अहमदाबाद के जातिवाद के बारे में.पढ़कर बहुत आश्चर्य हुआ. अब रवीश जी जैसा सम्मानित पत्रकार जब स्पेशल रिपोर्ट कर रहा है तो फिर शक की गुंजाइस तो थी नहीं फिर भी मन नहीं माना.अपने एक मित्र से संपर्क किया जो अहमदाबाद में रहे हैं तो उन्होने  भी इस तरह की किसी जातिवाद की समस्या से इनकार किया.लेकिन वो मित्र तीन वर्ष पहले ही अहमदाबाद छोड़ चुके थे इसलिये उनकी बात पर पूरी तरह से यकीन ना किया गया.एक तरफ रवीश जी थे..एन डी टी वी था दूसरे ओर हमारे नॉन गुजराती मित्र ..अंतत: एडवांटेज रवीश जी को ही दिया गया और हम बेसब्री से उस स्पेशल रिपोर्ट की प्रतीक्षा करने लगे.पता चला कि अभी फिलहाल वह रपट स्थगित कर दी गयी है. फिर योगेश शर्मा जी का लेख आया उससे स्थिति थोड़ी साफ सी हुई.उस लेख को पढ़कर मेरी भी हिम्मत हुई कि मैं भी अपने इसी तरह के अनुभव आप सब के सामने रखूँ. क्योकि जो बात योगेश जी के हिसाब से अहमदाबाद में सच है वही बात कमोबेश दिल्ली के लिये भी सच है कम से कम मेरे अनुभव तो यही कहते है. तकरीबन ड़ेढ़ बरस दिल्ली आया तो मकान की समस्या से दो चार होना पड़ा. लोगों ने सुझाया की सस्ता मकान किराय

क्रांतिकारी की कथा : हरिशंकर परसाई

आजकल हिन्दी ब्लॉगजगत में क्रांति का माहोल है,हाँलाकि कुछ लोगों का मानना है कि चिट्ठे क्रांति नहीं ला सकते...पर फिर भी कोशिश जारी है. कुछ लोग जन्मजात क्रांतिकारी होते है और कुछ लोग किताबें पढ़कर क्रांतिकारी हो जाते हैं. आज आपके सामने हरिशंकर परसाई का एक व्यंग्य प्रस्तुत है.जो एक "क्रांतिकारी की कथा" है. इसमें "चे-ग्वेवारा" का नाम भी आया है तो इन महानुभाव के बारे में थोड़ा बता दूं. अर्जेंटीना में जंन्मे "चे-ग्वेवारा" मार्क्सवादी क्रातिकारी थे.पेशे और पढ़ाई से वो डॉक्टर थे लेकिन उन पर मार्क्स साहित्य का गहरा प्रभाव पढ़ा और वे फीदेल कास्त्रो की क्रातिकारी सेना में सम्मिलित हुए.उन्होने कई पुस्तकें भी लिखी जो मूलत: स्पैनिश में थी पर उनके अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में भी खासे अनुवाद हुए.तो ये तो था चे-ग्वेवारा का परिचय.अब आप व्यंग्य का आनन्द लें. क्रांतिकारी की कथा : हरिशंकर परसाई ‘क्रांतिकारी’ उसने उपनाम रखा था। खूब पढ़ा-लिखा युवक। स्वस्थ,सुंदर। नौकरी भी अच्छी। विद्रोही। मार्क्स-लेनिन के उद्धरण देता, चे-ग्वेवारा का खास भक्त। कॉफी हाउस में काफी देर तक बैठता। खूब बाते

नारद जी : हम भी थे लाईन में...!!

बहुत हो गया.अब लगता है ज्यादा चुप नहीं बैठा जायेगा.साथी लोग उकसा रहे हैं... भय्या काहे चुप बैठे हो कुछ तो बोले ...कोई तो पक्ष लो...कह रहे हैं... चारों ओर हल्ला गुल्ला है और तुम चुपचाप बैठे हो.यह सब सुन कर बचपन की एक घटना याद आ गयी.एक बार बंदरों का झुंड हमारे मोहल्ले में आया.जाड़ों के दिन थे.हमारे जैसा एक मोटा बंदर धूप में आराम से लेटा धूप सेक रहा था.सारे बंदर कभी इस डाल तो कभी उस डाल मस्ती कर रहे थे.तभी उन में आपस में ना मालूम किस बात पर झगड़ा हुआ. सारे बंदर एक दूसरे पर खों खों करके टूट पड़े..लगता था सब एक दूसरे को गाली दे रहे हों...मोटे बंदर को कोई फरक नहीं पड़ा वो अभी भी धूप सेकने में मस्त था.सारे बंदर उसे बीच बीच में छेड़ के चले जाते.शायद उसे अपने गुट में शामिल करने की कोशिश कर रहे थे.पर उसे कोई फरक नहीं पड़ा वो वैसे ही सोया रहा... थकहार के सारे बंदर इधर उधर हो गये...वो तो बंदर थे उन्होने उस मोटे बंदर को बख्स दिया ... यदि वो इंसान होते तो !!... शायद पूरी कोशिश करते की वो उनके गुट में शामिल हो जाये.ना शामिल होने पर गाली भी देते ...उसे हिन्दू विरोधी या हिन्दू हितैषी की संज्ञा भी दे डालते पर