नारद जी : हम भी थे लाईन में...!!
बहुत हो गया.अब लगता है ज्यादा चुप नहीं बैठा जायेगा.साथी लोग उकसा रहे हैं... भय्या काहे चुप बैठे हो कुछ तो बोले ...कोई तो पक्ष लो...कह रहे हैं... चारों ओर हल्ला गुल्ला है और तुम चुपचाप बैठे हो.यह सब सुन कर बचपन की एक घटना याद आ गयी.एक बार बंदरों का झुंड हमारे मोहल्ले में आया.जाड़ों के दिन थे.हमारे जैसा एक मोटा बंदर धूप में आराम से लेटा धूप सेक रहा था.सारे बंदर कभी इस डाल तो कभी उस डाल मस्ती कर रहे थे.तभी उन में आपस में ना मालूम किस बात पर झगड़ा हुआ. सारे बंदर एक दूसरे पर खों खों करके टूट पड़े..लगता था सब एक दूसरे को गाली दे रहे हों...मोटे बंदर को कोई फरक नहीं पड़ा वो अभी भी धूप सेकने में मस्त था.सारे बंदर उसे बीच बीच में छेड़ के चले जाते.शायद उसे अपने गुट में शामिल करने की कोशिश कर रहे थे.पर उसे कोई फरक नहीं पड़ा वो वैसे ही सोया रहा... थकहार के सारे बंदर इधर उधर हो गये...वो तो बंदर थे उन्होने उस मोटे बंदर को बख्स दिया ... यदि वो इंसान होते तो !!... शायद पूरी कोशिश करते की वो उनके गुट में शामिल हो जाये.ना शामिल होने पर गाली भी देते ...उसे हिन्दू विरोधी या हिन्दू हितैषी की संज्ञा भी दे डालते पर थैंक गॉड !! वो तो महज बंदर थे ...इंसान नहीं..
आजकल लोग चिंतित हैं.लोगों की चिंता गालियों के समाजशास्त्र को ले के भी है.. गालियों के राजनीतिशास्त्र पर कोई नहीं बोलता ...समाजशास्त्र की चिंता की जा रही है....कोई कह रहा है शीतल हवा आने को है ..कोई कहता है लू (अंग्रेजी वाला)की बदबू है या लू (हिन्दी वाली) की गर्मी है ... तुमने तो सब कुछ सड़ा ही दिया ..इतना ना सड़ाओ भय्या ..ये रिलांयस फ्रैश का जमाना है..कुछ फ्रैश फ्रैश बातें करो.. बाल्टियों पानी बहाया जा चुका है ..सारे नारे अपनाये जा चुके हैं.. लोग गुस्से में हैं.. वैसे ही ना लाइट का भरोसा है ना पानी का ...जब साला कोई इम्पोर्टेंट मेल लिखनी होती है या पोस्ट तो बिजली बिना बताये चली जाती है और लोग हमें गलत समझने लगते हैं .. हम यह ही सोचते रह जाते है कि किसकी तानाशाही है..? किसे गरियायें....? तानाशाही नहीं चलेगी ..? ठीक है भाई नहीं चलेगी .. अब क्या करें ..? आत्महत्या कर लें .. ? नौकरी से इस्तीफा दे दें ? घर से बाहर निकलना बंद कर दें और कहें आपातकाल जैसी स्थिति है ? क्या करें ? पुरानी कविताऎं गुनगुनाने लगें ? गड़े मुर्दे उखाड़ने लगें ? क्या करें ?? पता नहीं आप भी ना .. बेचारे जीव को कितना सताते हैं.. क्या कहा ? बकर बकर ना करें ....तो क्या करें ? क्या ?? सिर्फ मेल कर दें ?? कर देंगे भाई मेल भी कर देंगें ..आजकल हर कोई सिर्फ एक मेल की दूरी पर ही तो है फिर भी साला आपस में मेल नहीं..पहले सालों बाद मेले में ही मिलते थे फिर भी मेलभाव था ...आजकल मेल का कोई भाव नहीं रहा.. पता नहीं क्या हो गया है..
आप भी सोच रहे होंगे कि मैं इतना अनर्गल प्रलाप क्यों कर रहा हूँ .. एकच्यूअली आजकल भौत टेनसन है यार ..हर कोई गुमनामी से उठकर लाइम लाइट में आ जा रहा है ..अब हमारे राष्ट्रपति के कैंडिडेट्स को ही देख लें... कल हम को ले के भी खींचातानी होने लगी कि आप भी अपना पर्चा दाखिल कर ही दो... हमने पहिले तो सोचा कि क्या करें लेकिन फिर साफ मना कर दिया ..ना जी ना हमें नहीं बनना राष्ट्रपति ...एक पत्नी के पति तो बन नहीं पाये ठीक से.. क्या खाक राष्ट्रपति बनेंगे... और फिर केवल रबर स्टैम्प बनके क्या फायदा ..कोई बम-गोला बनना होता तो ठीक भी था.. हिन्दी ब्लॉगजगत के ही काम आ जाते .. और फिर राष्ट्रपति बन के ढेर सारे शास्त्रीय संगीत की महफिलों में बैठना पड़ेगा ..ना जाने किस किस की जुगलबंदी सुननी पड़ेगी .. हम तो तैयार नहीं हैं.. तो हमने तो अपना निर्णय सुना दिया .. क्या फालतू के राष्ट्रपति बनने के चक्कर में एक हफ्ता ब्लॉग नहीं लिख पाये ..यदि बन ही जाते तो ... ?? ना जी ना हम तो अपने ब्लॉग में ही मस्त हैं.. कल से लिखते हैं फिर कुछ ... राष्ट्रपति पद के बाँकी सारे उम्मीदवारों को बैस्ट ऑफ लक जी ...
Comments
और ये जितनी बार "साला" शब्द का सदुपयोग किया है वह सब गिन कर नारद वालो को पेश कर दिया जाये कि यह बन्दा है जो गाली वाले की जगह भरने का पोटेन्शियल केन्डीडेट है :)
असली नारद मुनि --आज मुम्बई में...
ashish